Guru Paduka Stotram



Guru Paduka Stotram
अनंत संसार समुद्र तार नौकायिताभ्यां गुरुभक्तिदाभ्यां। 
वैराग्य साम्राज्यद पूजनाभ्यां नमो नमः श्री गुरु पादुकाभ्यां॥१॥

कवित्व वाराशि निशाकराभ्यां दौर्भाग्यदावांबुदमालिक्याभ्यां। 
दूरीकृतानम्र विपत्तिताभ्यां नमो नमः श्री गुरु पादुकाभ्यां॥२॥


नता ययोः श्रीपतितां समीयुः कदाचिदप्याशु दरिद्रवर्याः। 
मूकाश्च वाचसपतितां हि ताभ्यां नमो नमः श्री गुरु पादुकाभ्यां॥३॥

नाली कनी काशपदाहृताभ्यां नानाविमोहादिनिवारिकाभ्यां। नमज्जनाभीष्टततिब्रदाभ्यां नमो नमः श्री गुरु पादुकाभ्यां॥४॥

नृपालिमौलि ब्रज रत्न कांति सरिद्विराज्झषकन्यकाभ्यां। 
नृपत्वदाभ्यां नतलोकपंक्तेनमो नमः श्री गुरु पादुकाभ्यां॥५॥

पापांधकारार्क परंपराभ्यां पापत्रयाहीन्द्र खगेश्वराभ्यां। जाड्याब्धि संशोषण वाड्वाभ्यां नमो नमः श्री गुरु पादुकाभ्यां॥६॥

शमादिषट्क प्रदवैभवाभ्यां समाधि दान व्रत दीक्षिताभ्यां। 
रमाधवांघ्रि स्थिरभक्तिदाभ्यां नमो नमः श्री गुरु पादुकाभ्यां॥७॥

स्वार्चा पराणामखिलेष्टदाभ्यां स्वाहासहायाक्ष धुरंधराभ्यां। 
स्वान्ताच्छ भावप्रदपूजनाभ्यां नमो नमः श्री गुरु पादुकाभ्यां॥८॥

कामादिसर्प व्रजगारुडाभ्यां विवेक वैराग्य निधि प्रदाभ्यां। 
बोध प्रदाभ्यां दृत मोक्ष दाभ्यां नमो नमः श्री गुरु पादुकाभ्यां॥९॥

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अच्युताष्टकं



अच्युताष्टकं

अच्युतं केशवं रामनारायणं कृष्णदामोदरं वासुदेवं हरिम् ।
श्रीधरं माधवं गोपिकावल्लभं जानकीनायकं रामचन्द्रं भजे ॥ १॥

अच्युतं केशवं सत्यभामाधवं माधवं श्रीधरं राधिकाराधितम् ।
इन्दिरामन्दिरं चेतसा सुन्दरं देवकीनन्दनं नन्दनं सन्दधे ॥ २॥

विष्णवे जिष्णवे शङ्खिने चक्रिणे रुक्मिणिऱागिणे जानकीजानये ।
वल्लवीवल्लभायाऽर्चितायात्मने कंसविध्वंसिने वंशिने ते नमः ॥ ३॥

कृष्ण गोविन्द हे राम नारायण श्रीपते वासुदेवाजित श्रीनिधे ।
अच्युतानन्त हे माधवाधोक्षज द्वारकानायक द्रौपदीरक्षक ॥ ४॥

राक्षसक्षोभितः सीतया शोभितो दण्डकारण्यभूपुण्यताकारणः ।
लक्ष्मणेनान्वितो वानरैः सेवितोऽगस्त्यसम्पूजितो राघवः पातु माम् ॥ ५॥

धेनुकारिष्टकोऽनिष्टकृद्द्वेषिणां केशिहा कंसहृद्वण्शिकावादकः ।
पूतनाकोपकः सूरजाखेलनो बालगोपालकः पातु माम् सर्वदा ॥ ६॥

विद्युदुद्योतवत्प्रस्फुरद्वाससं प्रावृडम्भोदवत्प्रोल्लसद्विग्रहम् । विद्युदुद्योतवान्
वन्यया मालया शोभितोरःस्थलं लोहिताङ्घ्रिद्वयं वारिजाक्षं भजे ॥ ७॥

कुञ्चितैः कुन्तलैर्भ्राजमानाननं रत्नमौलिं लसत्कुण्डलं गण्डयोः ।
हारकेयूरकं कङ्कणप्रोज्ज्वलं किङ्किणीमञ्जुलं श्यामलं तं भजे ॥ ८॥

अच्युतस्याष्टकं यः पठेदिष्टदं प्रेमतः प्रत्यहं पूरुषः सस्पृहम् ।
वृत्ततः सुन्दरं कर्तृ विश्वम्भरस्तस्य वश्यो हरिर्जायते सत्वरम् ॥ ९॥

॥ इति श्रीशङ्कराचार्यविरचितमच्युताष्टकं सम्पूर्णम् ॥

हनुमान जी के 108 नाम (108 Names of Lord Hanuman in Hindi)


हनुमान जी के 108 नाम (108 Names of Lord Hanuman in Hindi)


1. आंजनेया : अंजना का पुत्र
2. महावीर : सबसे बहादुर
3. हनूमत : जिसके गाल फुले हुए हैं
4. मारुतात्मज : पवन देव के लिए रत्न जैसे प्रिय
5. तत्वज्ञानप्रद : बुद्धि देने वाले
6. सीतादेविमुद्राप्रदायक : सीता की अंगूठी भगवान राम को देने वाले
7. अशोकवनकाच्छेत्रे : अशोक बाग का विनाश करने वाले
8. सर्वमायाविभंजन : छल के विनाशक
9. सर्वबन्धविमोक्त्रे : मोह को दूर करने वाले
10. रक्षोविध्वंसकारक : राक्षसों का वध करने वाले
11. परविद्या परिहार : दुष्ट शक्तियों का नाश करने वाले
12. परशौर्य विनाशन : शत्रु के शौर्य को खंडित करने वाले
13. परमन्त्र निराकर्त्रे : राम नाम का जाप करने वाले
14. परयन्त्र प्रभेदक : दुश्मनों के उद्देश्य को नष्ट करने वाले
15. सर्वग्रह विनाशी : ग्रहों के बुरे प्रभावों को खत्म करने वाले
16. भीमसेन सहायकृथे : भीम के सहायक
17. सर्वदुखः हरा : दुखों को दूर करने वाले
18. सर्वलोकचारिणे : सभी जगह वास करने वाले
19. मनोजवाय : जिसकी हवा जैसी गति है
20. पारिजात द्रुमूलस्थ : प्राजक्ता पेड़ के नीचे वास करने वाले
21. सर्वमन्त्र स्वरूपवते : सभी मंत्रों के स्वामी
22. सर्वतन्त्र स्वरूपिणे : सभी मंत्रों और भजन का आकार जैसा
23. सर्वयन्त्रात्मक : सभी यंत्रों में वास करने वाले
24. कपीश्वर : वानरों के देवता
25. महाकाय : विशाल रूप वाले
26. सर्वरोगहरा : सभी रोगों को दूर करने वाले
27. प्रभवे : सबसे प्रिय
28. बल सिद्धिकर :
29. सर्वविद्या सम्पत्तिप्रदायक : ज्ञान और बुद्धि प्रदान करने वाले
30. कपिसेनानायक : वानर सेना के प्रमुख
31. भविष्यथ्चतुराननाय : भविष्य की घटनाओं के ज्ञाता
32. कुमार ब्रह्मचारी : युवा ब्रह्मचारी
33. रत्नकुण्डल दीप्तिमते : कान में मणियुक्त कुंडल धारण करने वाले
34. चंचलद्वाल सन्नद्धलम्बमान शिखोज्वला : जिसकी पूंछ उनके सर से भी ऊंची है
35. गन्धर्व विद्यातत्वज्ञ, : आकाशीय विद्या के ज्ञाता
36. महाबल पराक्रम : महान शक्ति के स्वामी
37. काराग्रह विमोक्त्रे : कैद से मुक्त करने वाले
38. शृन्खला बन्धमोचक: तनाव को दूर करने वाले
39. सागरोत्तारक : सागर को उछल कर पार करने वाले
40. प्राज्ञाय : विद्वान
41. रामदूत : भगवान राम के राजदूत
42. प्रतापवते : वीरता के लिए प्रसिद्ध
43. वानर : बंदर
44. केसरीसुत : केसरी के पुत्र
45. सीताशोक निवारक : सीता के दुख का नाश करने वाले
46. अन्जनागर्भसम्भूता : अंजनी के गर्भ से जन्म लेने वाले
47. बालार्कसद्रशानन : उगते सूरज की तरह तेजस
48. विभीषण प्रियकर : विभीषण के हितैषी
49. दशग्रीव कुलान्तक : रावण के राजवंश का नाश करने वाले
50. लक्ष्मणप्राणदात्रे : लक्ष्मण के प्राण बचाने वाले
51. वज्रकाय : धातु की तरह मजबूत शरीर
52. महाद्युत : सबसे तेजस
53. चिरंजीविने : अमर रहने वाले
54. रामभक्त : भगवान राम के परम भक्त
55. दैत्यकार्य विघातक : राक्षसों की सभी गतिविधियों को नष्ट करने वाले
56. अक्षहन्त्रे : रावण के पुत्र अक्षय का अंत करने वाले
57. कांचनाभ : सुनहरे रंग का शरीर
58. पंचवक्त्र : पांच मुख वाले
59. महातपसी : महान तपस्वी
60. लन्किनी भंजन : लंकिनी का वध करने वाले
61. श्रीमते : प्रतिष्ठित
62. सिंहिकाप्राण भंजन : सिंहिका के प्राण लेने वाले
63. गन्धमादन शैलस्थ : गंधमादन पर्वत पार निवास करने वाले
64. लंकापुर विदायक : लंका को जलाने वाले
65. सुग्रीव सचिव : सुग्रीव के मंत्री
66. धीर : वीर
67. शूर : साहसी
68. दैत्यकुलान्तक : राक्षसों का वध करने वाले
69. सुरार्चित : देवताओं द्वारा पूजनीय
70. महातेजस : अधिकांश दीप्तिमान
71. रामचूडामणिप्रदायक : राम को सीता का चूड़ा देने वाले
72. कामरूपिणे : अनेक रूप धारण करने वाले
73. पिंगलाक्ष : गुलाबी आँखों वाले
74. वार्धिमैनाक पूजित : मैनाक पर्वत द्वारा पूजनीय
75. कबलीकृत मार्ताण्डमण्डलाय : सूर्य को निगलने वाले
76. विजितेन्द्रिय : इंद्रियों को शांत रखने वाले
77. रामसुग्रीव सन्धात्रे : राम और सुग्रीव के बीच मध्यस्थ
78. महारावण मर्धन : रावण का वध करने वाले
79. स्फटिकाभा : एकदम शुद्ध
80. वागधीश : प्रवक्ताओं के भगवान
81. नवव्याकृतपण्डित : सभी विद्याओं में निपुण
82. चतुर्बाहवे : चार भुजाओं वाले
83. दीनबन्धुरा : दुखियों के रक्षक
84. महात्मा : भगवान
85. भक्तवत्सल : भक्तों की रक्षा करने वाले
86. संजीवन नगाहर्त्रे : संजीवनी लाने वाले
87. सुचये : पवित्र
88. वाग्मिने : वक्ता
89. दृढव्रता : कठोर तपस्या करने वाले
90. कालनेमि प्रमथन : कालनेमि का प्राण हरने वाले
91. हरिमर्कट मर्कटा : वानरों के ईश्वर
92. दान्त : शांत
93. शान्त : रचना करने वाले
94. प्रसन्नात्मने : हंसमुख
95. शतकन्टमदापहते : शतकंट के अहंकार को ध्वस्त करने वाले
96. योगी : महात्मा
97. मकथा लोलाय : भगवान राम की कहानी सुनने के लिए व्याकुल
98. सीतान्वेषण पण्डित : सीता की खोज करने वाले
99. वज्रद्रनुष्ट :
100. वज्रनखा : वज्र की तरह मजबूत नाखून
101. रुद्रवीर्य समुद्भवा : भगवान शिव का अवतार
102. इन्द्रजित्प्रहितामोघब्रह्मास्त्र विनिवारक : इंद्रजीत के ब्रह्मास्त्र के प्रभाव को नष्ट करने वाले
103. पार्थ ध्वजाग्रसंवासिने : अर्जुन के रथ पार विराजमान रहने वाले
104. शरपंजर भेदक : तीरों के घोंसले को नष्ट करने वाले
105. दशबाहवे : दस्द भुजाओं वाले
106. लोकपूज्य : ब्रह्मांड के सभी जीवों द्वारा पूजनीय
107. जाम्बवत्प्रीतिवर्धन : जाम्बवत के प्रिय
108. सीताराम पादसेवा : भगवान राम और सीता की सेवा में तल्लीन रहने वाले


एही मुरारे/Ehi Murare

एही मुरारे
Ehi Murare



एही मुरारे कुंजबिहारी 
एही प्रनता जना बँधो, 
हे माधव मधु मथना वरेण्य 
केशव करुणा सिन्धो |

रासा निकुंजे गुंजति नियतं 
ब्रहमरस्ताम  किला कांता,
एही निभृता पथ पांथा 
त्वमिहायाचे दरसना दानं, 
हे मधुसूदन शांता ||

नव नीरज धर स्यामला सुंदर 
चन्द्र कुसुमा रुचिवेशा, 
गोपीगण ह्रदयेश, 
गोवर्धन धरा वृन्दावनचर 
वंशीधर परमेषा |

राधा रंजना कंसा निशोदन 
प्रनतिस्तावक  चरणे,
निखिला निराश्रया शरणे, 
एही जनार्दन पीताम्बरा धरा 
कुंजे मंथर पवने ||

एही मुरारे कुंजबिहारी 
एही प्रनता जना बँधो, 
हे माधव मधु मथना वरेण्य 
केशव करुणा सिन्धो |

|| जय श्री कृष्ण || 
| कृष्णम वन्दे जगदगुरुम |

श्री कृष्ण चालीसा


श्री कृष्ण चालीसा
॥दोहा॥ बंशी शोभित कर मधुर, नील जलद तन श्याम। 
अरुण अधर जनु बिम्बफल, नयन कमल अभिराम॥

पूर्ण इन्द्र, अरविन्द मुख, पीताम्बर शुभ साज।
जय मनमोहन मदन छवि, कृष्णचन्द्र महाराज॥


जय यदुनंदन जय जगवंदन।
जय वसुदेव देवकी नन्दन॥

जय यशुदा सुत नन्द दुलारे। जय प्रभु भक्तन के दृग तारे॥
जय नटनागर, नाग नथइया॥ कृष्ण कन्हइया धेनु चरइया॥
पुनि नख पर प्रभु गिरिवर धारो। आओ दीनन कष्ट निवारो॥
वंशी मधुर अधर धरि टेरौ। होवे पूर्ण विनय यह मेरौ॥
आओ हरि पुनि माखन चाखो। आज लाज भारत की राखो॥
गोल कपोल, चिबुक अरुणारे। मृदु मुस्कान मोहिनी डारे॥
राजित राजिव नयन विशाला। मोर मुकुट वैजन्तीमाला॥
कुंडल श्रवण, पीत पट आछे। कटि किंकिणी काछनी काछे॥
नील जलज सुन्दर तनु सोहे। छबि लखि, सुर नर मुनिमन मोहे॥
मस्तक तिलक, अलक घुँघराले। आओ कृष्ण बांसुरी वाले॥
करि पय पान, पूतनहि तार्यो। अका बका कागासुर मार्यो॥
मधुवन जलत अगिन जब ज्वाला। भै शीतल लखतहिं नंदलाला॥
सुरपति जब ब्रज चढ़्यो रिसाई। मूसर धार वारि वर्षाई॥
लगत लगत व्रज चहन बहायो। गोवर्धन नख धारि बचायो॥
लखि यसुदा मन भ्रम अधिकाई। मुख मंह चौदह भुवन दिखाई॥
दुष्ट कंस अति उधम मचायो॥ कोटि कमल जब फूल मंगायो॥
नाथि कालियहिं तब तुम लीन्हें। चरण चिह्न दै निर्भय कीन्हें॥
करि गोपिन संग रास विलासा। सबकी पूरण करी अभिलाषा॥
केतिक महा असुर संहार्यो। कंसहि केस पकड़ि दै मार्यो॥
मातपिता की बन्दि छुड़ाई ।उग्रसेन कहँ राज दिलाई॥
महि से मृतक छहों सुत लायो। मातु देवकी शोक मिटायो॥
भौमासुर मुर दैत्य संहारी। लाये षट दश सहसकुमारी॥
दै भीमहिं तृण चीर सहारा। जरासिंधु राक्षस कहँ मारा॥
असुर बकासुर आदिक मार्यो। भक्तन के तब कष्ट निवार्यो॥
दीन सुदामा के दुःख टार्यो। तंदुल तीन मूंठ मुख डार्यो॥
प्रेम के साग विदुर घर माँगे।दर्योधन के मेवा त्यागे॥
लखी प्रेम की महिमा भारी।ऐसे श्याम दीन हितकारी॥
भारत के पारथ रथ हाँके।लिये चक्र कर नहिं बल थाके॥
निज गीता के ज्ञान सुनाए।भक्तन हृदय सुधा वर्षाए॥
मीरा थी ऐसी मतवाली।विष पी गई बजाकर ताली॥
राना भेजा साँप पिटारी।शालीग्राम बने बनवारी॥
निज माया तुम विधिहिं दिखायो।उर ते संशय सकल मिटायो॥
तब शत निन्दा करि तत्काला।जीवन मुक्त भयो शिशुपाला॥
जबहिं द्रौपदी टेर लगाई।दीनानाथ लाज अब जाई॥
तुरतहि वसन बने नंदलाला।बढ़े चीर भै अरि मुँह काला॥
अस अनाथ के नाथ कन्हइया। डूबत भंवर बचावइ नइया॥
सुन्दरदास आ उर धारी।दया दृष्टि कीजै बनवारी॥
नाथ सकल मम कुमति निवारो।क्षमहु बेगि अपराध हमारो॥
खोलो पट अब दर्शन दीजै।बोलो कृष्ण कन्हइया की जै॥
दोहा यह चालीसा कृष्ण का, पाठ करै उर धारि।
अष्ट सिद्धि नवनिधि फल, लहै पदारथ चारि॥.

श्री दुर्गा चालीसा


श्री दुर्गा चालीसा

नमो नमो दुर्गे सुख करनी. नमो नमो अम्बे दुःख हरनी.
निरंकार है ज्योति तुम्हारी. तिहूँ लोक फ़ैली उजियारी.
शशी ललाट मुख महा विशाला. नेत्र लाल भृकुटी विकराला.
रुप मातु को अधिक सुहावे. दरश करत जन अति सुख पावे.
तुम संसार शक्ति लय कीना. पालन हेतु अन्न धन धन दीना.
अन्न्पूर्णा हुई जग पाला. तुम ही आदि सुन्दरी बाला.
प्रलयकाल सब नाशन हारी. तुम गौरी शिव शंकर प्यारी.
शिव योगी तुम्हारे गुण गावे. ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें.
रुप सरस्वती का तुम धारा. दे सुबुद्धि ऋषि मुनिन उबारा.
धरा रुप नरसिंह को अम्बा. प्रकट भई फ़ाड़ कर खम्बा.
रक्षा कर प्रहलाद बचायो. हिरणाकुश को स्वर्ग पठायो.
लक्ष्मी रुप धरो जग माहीं. श्री नारायण अंग समाहीं.
क्षीरसिन्धु में करत विलासा. दया सिन्धु दीजै मन आसा.
हिंगलाज में तुम्ही भवानी, महिमा अमित न जात बखानी.
मातंगी धूमावती माता. भूवनेश्वरी बगला सुखदाता.
श्री भैरव तारा जग तारणि. छिन्नभाल भव दुःख निवारिणी.
केहरि वाहन सोहे भवानी. लांगुर बीर चलत अगवानी.
कर में खप्पर खड़्ग विराजै. जाको देख काल डर भाजै.
सोहे अस्त्र और त्रिशूला. जाते उठ त शत्रु हिय शूला.
नगर कोटि में तुम्ही विराजत. तिहूँ लोक में डंका बाजत.
शुम्भ निशुम्भ दानव तुम मारे, रक्त बीज शंखन संहारे.
महिशासुर नृप अति अभिमानी. जेही अध भार मही अकुलानी.
रुप कराल कालिका धारा. सेन सहित तुम तिहि संहारा.
परी गाढ़ संतन पर जब जब, भई सहाय मातु तुम तब तब.
अमर पुरी अरु बासव लोका. तव महिमा सब कहे अशोका.
ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी. तुम्हें सदा पूजें नर नारी.
प्रेम भक्ति से जो यश गावें. दुःख दरिद्र निकट नही आवे.
जोगी सुर नर कहत पुकारी. योग न हो बिन शक्ति तुम्हारी.
शंकर आचारज तप कीनो. काम अरु क्रोध जीति सब लीनो.
निशिदिन ध्यान धरो शंकर को. काहु काल नहिं सुमिरो तुमको.
शक्ति रुप को मरम न पायो. शक्ति गई तब मन पछतायो.
शरणागत हुई कीर्ति बखानी. जय जय जय जगदम्ब भवानी.
भई प्रसन्न आदि जगदम्बा. दई शक्ति नहिं कीन बिलम्बा.
मोको मात कश्ट अति घेरो. तुम बिन कौन हरे दुःख मेरो.
आशा तृश्णा निपट सतावे. रिपु मूरख मोहि अति डर पावै.
शत्रु नाश कीजै महारानी. सुमिरौं एकचित तुम्हें भवानी.
करो कृपा हे मातु दयाला. ऋद्धि-सिद्धि दे करहु निहाला.
जब लगि जियौ दया फ़ल पाऊं, तुम्हरे यश में सदा सुनाऊं.
दुर्गा चालीसा जो कोई गावै. सब सुख भोग परम पद पावै.
देवीदास शरण निज जानी. करहु कृपा जगदम्ब भवानी.

Mere to Giridhar Gopal, MeeraBai Bhajan

Mere to Giridhar Gopal

MeeraBai Bhajan
Voice -"Vanijairam ji"

मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई

माई री! मैं तो लियो गोविंदो मोल।

कोई कहै छानै, कोई कहै छुपकै, लियो री बजंता ढोल।

कोई कहै मुहंघो, कोई कहै सुहंगो, लियो री तराजू तोल।

कोई कहै कारो, कोई कहै गोरो, लियो री अमोलिक मोल।

या ही कूं सब जाणत है, लियो री आँखी खोल।

मीरा कूं प्रभु दरसण दीज्‍यो, पूरब जनम को कोल।


मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई
जाके सिर मोर मुकुट मेरो पति सोई
तात मात भ्रात बंधु आपनो न कोई
छांड़ी दई कुलकी कानि कहा करिहै कोई
संतन ढिग बैठि बैठि लोक लाज खोई
चुनरी के किये टूक ओढ़ लीन्ही लोई
मोती मूंगे उतार बनमाला पोई
अंसुवन जल सीचि सीचि प्रेम बेलि बोई
अब तो बेल फैल गई आंनद फल होई
दूध की मथनियां बड़े प्रेम से बिलोई
माखन जब काढ़ि लियो छाछ पिये कोई
भगति देखि राजी हुई जगत देखि रोई
दासी मीरा लाल गिरधर तारो अब मोही

mērē tō giridhara gōpāla dūsarō na kōī.
jākē sira mōra mukuṭa mērō pati sōī.
tāta māta bhrāta baṁdhu āpanō na kōī...
chām̐ṛi dī kula kī kāni kahā karihai kōī.
saṁtana ḍhiṁga baiṭhi-baiṭhi lōka lāja khōī..
cunarī kē kiyē ṭūka ōṛha līnhī lōī.
mōtī mūm̐gē utāra banamālā pōī..
am̐suvana jala sīṁci sīṁci prēma bēli bōī.
aba tō bēla phaila gaī āṇam̐da phala hōī..
dūdha kī mathaniyām̐ baṛē prēma sē bilōī.
mākhana jaba kāṛhi liyō chāchā piyē kōī..
bhagata dēkha rājī huī jagata dēkhi rōī.
dāsī "mīrā" lāla giridhara tārō aba mōhī..
- mīrābāī

mere to girdhar gopal dusro na koi
mere to girdhar gopal dusro na koi
jako sar mor mukat mere pati wohi
mere to girdhar gopal dusro na koi

koi kahe karo koi kahe goro
koi kahe karo koi kahe goro
mero kai ankhiyo khol
koi kahe halko koi kahe baharo
koi kahe halko koi kahe baharo
hiyo hai taraju tol
mere to girdhar gopal dusro na koi
mere to girdhar gopal dusro na koi

koi kahe chane koi kahe chaine
koi kahe chane koi kahe chaine
miyo hai bajuanta dhol
tan ka gahna sab kuch dina
tan ka gahna sab kuch dina
diya hai bajuband khol
mere to girdhar gopal dusro na koi
mere to girdhar gopal dusro na koi
jako sar mor mukat mere pati wohi
mere to girdhar gopal dusro na koi





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Bala main bairagan hoongi - Meerabai Bhajan


Bala main bairagan hoongi 

Meerabai Bhajan


बाला मैं बैरागण हूंगी।
जिन भेषां म्हारो साहिब रीझे सोही भेष धरूंगी।


सील संतोष धरूं घट भीतर समता पकड़ रहूंगी।
गुरुके ग्यान रंगू तन कपड़ा मन मुद्रा पैरूंगी।

जाको नाम निरंजन कहिये ताको ध्यान धरूंगी।
या तन की मैं करूं कीगरी रसना नाम कहूंगी।
प्रेम पीतसूं हरिगुण गाऊं चरणन लिपट रहूंगी।
मीरा के प्रभु गिरधर नागर साधां संग रहूंगी।


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Papeeha Re Peev Ki Baani Na Bol - Meera Bhajan

Papeeha Re Peev Ki Baani Na Bol

पपैया रे पिवकी बाणि न बोल।
सुणि पावेली बिरहणी रे थारी रालेली पांख मरोड़।।

चांच कटाऊँ पपैया रे ऊपर कालोर लूण।
पिव मेरा मैं पिव की रे तू पिव कहै स कूण।।

थारा सबद सुहावणा रे जो पिव मेला आज।
चांच मंढाऊँ थारी सोवनी रे तू मेरे सिरताज।।

प्रीतम कूं पतियां लिखूं रे कागा तूं ले जाय।
जाइ प्रीतम जासूं यूं कहै रे थांरि बिरहण धान न खाय।।

मीरा दासी ब्याकुली रे पिव-पिव करत बिहाय।
बेगि मिलो प्रभु अंतरजामी तुम बिनु रह्यौ न जाय।।

शब्दार्थ-पिवी की = प्रियतम की। पावेली = पावेगी। रालैली = रक्वेगी। कालर = काला। मेला = मिल जाता। धान = धान्य, अन्न।

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Mere to Giridhar Gopal, MeeraBai Bhajan


Mere to Giridhar Gopal

MeeraBai Bhajan
Voice -"Vanijairam ji"

मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई

माई री! मैं तो लियो गोविंदो मोल।

कोई कहै छानै, कोई कहै छुपकै, लियो री बजंता ढोल।

कोई कहै मुहंघो, कोई कहै सुहंगो, लियो री तराजू तोल।

कोई कहै कारो, कोई कहै गोरो, लियो री अमोलिक मोल।

या ही कूं सब जाणत है, लियो री आँखी खोल।

मीरा कूं प्रभु दरसण दीज्‍यो, पूरब जनम को कोल।


मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई
जाके सिर मोर मुकुट मेरो पति सोई
तात मात भ्रात बंधु आपनो न कोई
छांड़ी दई कुलकी कानि कहा करिहै कोई
संतन ढिग बैठि बैठि लोक लाज खोई
चुनरी के किये टूक ओढ़ लीन्ही लोई
मोती मूंगे उतार बनमाला पोई
अंसुवन जल सीचि सीचि प्रेम बेलि बोई
अब तो बेल फैल गई आंनद फल होई
दूध की मथनियां बड़े प्रेम से बिलोई
माखन जब काढ़ि लियो छाछ पिये कोई
भगति देखि राजी हुई जगत देखि रोई
दासी मीरा लाल गिरधर तारो अब मोही

mērē tō giridhara gōpāla dūsarō na kōī.
jākē sira mōra mukuṭa mērō pati sōī.
tāta māta bhrāta baṁdhu āpanō na kōī...
chām̐ṛi dī kula kī kāni kahā karihai kōī.
saṁtana ḍhiṁga baiṭhi-baiṭhi lōka lāja khōī..
cunarī kē kiyē ṭūka ōṛha līnhī lōī.
mōtī mūm̐gē utāra banamālā pōī..
am̐suvana jala sīṁci sīṁci prēma bēli bōī.
aba tō bēla phaila gaī āṇam̐da phala hōī..
dūdha kī mathaniyām̐ baṛē prēma sē bilōī.
mākhana jaba kāṛhi liyō chāchā piyē kōī..
bhagata dēkha rājī huī jagata dēkhi rōī.
dāsī "mīrā" lāla giridhara tārō aba mōhī..
- mīrābāī

mere to girdhar gopal dusro na koi
mere to girdhar gopal dusro na koi
jako sar mor mukat mere pati wohi
mere to girdhar gopal dusro na koi

koi kahe karo koi kahe goro
koi kahe karo koi kahe goro
mero kai ankhiyo khol
koi kahe halko koi kahe baharo
koi kahe halko koi kahe baharo
hiyo hai taraju tol
mere to girdhar gopal dusro na koi
mere to girdhar gopal dusro na koi

koi kahe chane koi kahe chaine
koi kahe chane koi kahe chaine
miyo hai bajuanta dhol
tan ka gahna sab kuch dina
tan ka gahna sab kuch dina
diya hai bajuband khol
mere to girdhar gopal dusro na koi
mere to girdhar gopal dusro na koi
jako sar mor mukat mere pati wohi
mere to girdhar gopal dusro na koi





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बिना प्रेम धीरज नहीं (भक्ति गीत) / Bina Prem Dheeraj Naahi Bhakti Geet



Bhajan Lyrics
 (Written by Saint Kabir Das) : 
बिना प्रेम धीरज नहीं,
बिरह बिना बैराग..
सतगुरु बिना ना छुटिहै, 
मन मनसा की दाग
बिना प्रेम धीरज नहीं ..
नैना नीर भर नाइ आँख
रहत बसे निस जाम
पपीहा ज्यूँ पीहू पीहू करे ...
कब मिल होंगे त्राण.. त्राण..त्राण
बिना प्रेम धीरज नहीं ..

आई ना सकु तुझपे
सकु ना तुझ बुलाई
जियरा युही लैहु उड़ी..
बिरह तपाई ..तपाई ..तपाई..
बिना प्रेम धीरज नहीं 

Kabir Bhajan Meaning :
 जिसके ह्रदय में प्रेम न हो वह धैर्य का अर्थ नहीं समझ सकता और बिरह कि वेदना को केवल एक बैरागी ही समझ सकता है, प्रेम, धीरज, बिरह और बैराग का सम्बन्ध होता है, उसी प्रकार गुरु और शिष्य के ह्रदय का सम्बन्ध होता है,  बिना गुरु के शिष्य के मन से इच्छाओं को कोई और नहीं मिटा सकता है |


नरेंद्र (विवेकानंद) पहली बार रामकृष्ण से नवंबर 1881 को सुरेन्द्रनाथ मित्रा के घर सम्हारो में मिले, जहा नरेंद्र को संगीत गायन के लिए बुलाया गया था. परमहंस जी ने नरेंद्र से प्रभवित होकर उन्हें दक्षिणेश्वर आने को कहा.

Bhajan sung by Vivekanand during his first meeting with his Guru Sri Ramakrishna Paramahansa Dev to pay obeisance and respect.


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